Chha Dhala (Hindi).

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अन्वयार्थ :[जिस ज्ञानसे ] (केवलि भगवन्ता)
केवलज्ञानी भगवान (सकल द्रव्यके) छहों द्रव्योंके (अनन्त)
अपरिमित (गुन) गुणोंको और (अनन्ता) अनन्त (परजाय)
पर्यायोंको (एकै काल) एक साथ (प्रगट) स्पष्ट (जानै) जानते हैं
[उस ज्ञानको ] (सकल) सकलप्रत्यक्ष अथवा केवलज्ञान कहते हैं ।
(जगतमें) इस जगतमें (ज्ञान समान) सम्यग्ज्ञान जैसा (आन)
दूसरा कोई पदार्थ (सुखकौ) सुखका (न कारन) कारण नहीं है ।
(इहि) यह सम्यग्ज्ञान ही (जन्मजरामृति-रोग-निवारन) जन्म, जरा
[वृद्धावस्था ] और मृत्युरूपी रोगोंको दूर करनेके लिये (परमामृत)
उत्कृष्ट अमृतसमान है ।
भावार्थ :(१) जो ज्ञान तीनकाल और तीनलोकवर्ती
सर्व पदार्थों (अनन्तधर्मात्मक सर्व द्रव्य-गुण-पर्यायोंको) प्रत्येक
समयमें यथास्थित, परिपूर्णरूपसे स्पष्ट और एकसाथ जानता है,
उस ज्ञानको केवलज्ञान कहते हैं । जो सकलप्रत्यक्ष है ।
(२) द्रव्य, गुण और पर्यायोंको केवली भगवान जानते हैं;
किन्तु उनके अपेक्षित धर्मोंको नहीं जान सकते –ऐसा मानना
असत्य है तथा वे अनन्तको अथवा मात्र अपने आत्माको ही जानते
चौथी ढाल ][ ९९