अपरिमित (गुन) गुणोंको और (अनन्ता) अनन्त (परजाय)
पर्यायोंको (एकै काल) एक साथ (प्रगट) स्पष्ट (जानै) जानते हैं
[उस ज्ञानको ] (सकल) सकलप्रत्यक्ष अथवा केवलज्ञान कहते हैं ।
(जगतमें) इस जगतमें (ज्ञान समान) सम्यग्ज्ञान जैसा (आन)
दूसरा कोई पदार्थ (सुखकौ) सुखका (न कारन) कारण नहीं है ।
(इहि) यह सम्यग्ज्ञान ही (जन्मजरामृति-रोग-निवारन) जन्म, जरा
[वृद्धावस्था ] और मृत्युरूपी रोगोंको दूर करनेके लिये (परमामृत)
उत्कृष्ट अमृतसमान है ।
समयमें यथास्थित, परिपूर्णरूपसे स्पष्ट और एकसाथ जानता है,
उस ज्ञानको केवलज्ञान कहते हैं । जो सकलप्रत्यक्ष है ।
असत्य है तथा वे अनन्तको अथवा मात्र अपने आत्माको ही जानते