Chha Dhala (Hindi). Gatha: 6: gyAnke dosh aur manushya paryAyAdikee durlabhata (Dhal 4).

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(छिनमें) क्षणमात्रमें (सहज) सरलतासे (टरै) नष्ट हो जाते हैं ।
[यह जीव ] (मुनिव्रत) मुनियोंके महाव्रतोंको (धार) धारण करके
(अनन्तबार) अनन्तबार (ग्रीवक) नववें ग्रैवेयक तक (उपजायो)
उत्पन्न हुआ, (पै) परन्तु (निज आतम) अपने आत्माके (ज्ञान
विना) ज्ञान बिना (लेश) किंचित्मात्र (सुख) सुख (न पायो) प्राप्त
न कर सका ।
भावार्थ :मिथ्यादृष्टि जीव आत्मज्ञान (सम्यग्ज्ञान)के
बिना करोड़ों जन्मों-भवों तक बालतपरूप उद्यम करके जितने
कर्मोंका नाश करता है उतने कर्मोंका नाश सम्यग्ज्ञानी
जीव–स्वोन्मुख ज्ञातापनेके कारण स्वरूपगुप्तिसे-क्षणमात्रमें सहज
ही कर डालता है । यह जीव, मुनिके (द्रव्यलिंगी मुनिके)
महाव्रतोंको धारण करके उनके प्रभावसे नववें ग्रैवेयक तकके
विमानोंमें अनन्तबार उत्पन्न हुआ; परन्तु आत्माके भेदविज्ञान
(सम्यग्ज्ञान अथवा स्वानुभव)के बिना जीवको वहाँ भी लेशमात्र सुख
प्राप्त नहीं हुआ ।
ज्ञानके दोष और मनुष्यपर्याय आदिकी दुर्लभता
तातैं जिनवर-कथित तत्त्व अभ्यास करीजे
संशय विभ्रम मोह त्याग, आपो लख लीजे ।।
यह मानुषपर्याय, सुकुल, सुनिवौ जिनवानी
इहविधि गये न मिले, सुमणि ज्यौं उदधि समानी ।।।।
अन्वयार्थ :(तातैं) इसलिये (जिनवर-कथित)
जिनेन्द्र भगवानके कहे हुए (तत्त्व) परमार्थ तत्त्वका (अभ्यास)
अभ्यास (करीजे) करना चाहिये और (संशय) संशय (विभ्रम)
चौथी ढाल ][ १०१