[यह जीव ] (मुनिव्रत) मुनियोंके महाव्रतोंको (धार) धारण करके
(अनन्तबार) अनन्तबार (ग्रीवक) नववें ग्रैवेयक तक (उपजायो)
उत्पन्न हुआ, (पै) परन्तु (निज आतम) अपने आत्माके (ज्ञान
विना) ज्ञान बिना (लेश) किंचित्मात्र (सुख) सुख (न पायो) प्राप्त
न कर सका ।
कर्मोंका नाश करता है उतने कर्मोंका नाश सम्यग्ज्ञानी
जीव–स्वोन्मुख ज्ञातापनेके कारण स्वरूपगुप्तिसे-क्षणमात्रमें सहज
ही कर डालता है । यह जीव, मुनिके (द्रव्यलिंगी मुनिके)
महाव्रतोंको धारण करके उनके प्रभावसे नववें ग्रैवेयक तकके
विमानोंमें अनन्तबार उत्पन्न हुआ; परन्तु आत्माके भेदविज्ञान
(सम्यग्ज्ञान अथवा स्वानुभव)के बिना जीवको वहाँ भी लेशमात्र सुख
प्राप्त नहीं हुआ ।
अभ्यास (करीजे) करना चाहिये और (संशय) संशय (विभ्रम)