Chha Dhala (Hindi).

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विपर्यय तथा (मोह) अनध्यवसाय [अनिश्चितता ] को (त्याग)
छोड़कर (आपो) अपने आत्माको (लख लीजे) लक्षमें लेना चाहिये
अर्थात् जानना चाहिये । [यदि ऐसा नहीं किया तो ] (यह) यह
(मानुष पर्याय) मनुष्य भव (सुकुल) उत्तम कुल और (जिनवानी)
जिनवाणीका (सुनिवौ) सुनना (इह विध) ऐसा सुयोग (गये) बीत
जाने पर, (उदधि) समुद्रमें (समानी) समाये-डूबे हुए
(सुमणि ज्यौं) सच्चे रत्नकी भाँति [पुनः ] (न मिलै) मिलना
कठिन है ।
भावार्थ :आत्मा और परवस्तुओंके भेदविज्ञानको प्राप्त
करनेके लिये जिनदेव द्वारा प्ररूपित सच्चे तत्त्वोंका पठन-पाठन
१०२ ][ छहढाला