Chha Dhala (Hindi). Gatha: 9: punyA-pApame harsh vishAdkA nishedh aur tAtparyakee bAt (Dhal 4).

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दाह) भयंकर दावानल (जगत-जन) संसारी जीवों रूपी (अरनि)
अरण्य-पुराने वनको (दझावै) जला रहा है (तास) उसकी
शान्तिका (उपाय) उपाय (आन) दूसरा (न) नहीं है; [मात्र ]
(ज्ञान-घनघान) ज्ञानरूपी वर्षाका समूह (बुझावै) शान्त करता है ।
भावार्थ :भूत, वर्तमान और भविष्य –तीनोंकालमें जो
जीव मोक्ष सुखको प्राप्त हुए हैं, होंगे और (वर्तमानमें विदेह-क्षेत्रमें)
हो रहे हैं; वह इस सम्यग्ज्ञानका ही प्रभाव है । –ऐसा पूर्वाचार्योंने
कहा है । जिसप्रकार दावानल (वनमें लगी हुई अग्नि) वहाँकी
समस्त वस्तुओंको भस्म कर देता है; उसीप्रकार पाँच इन्द्रियों
सम्बन्धी विषयोंकी इच्छा संसारी जीवोंको जलाती है–दुःख देती
है और जिसप्रकार वर्षाकी झड़ी उस दावानलको बुझा देती है;
उसीप्रकार यह सम्यग्ज्ञान उन विषयोंको शान्त कर देता है– नष्ट
कर देता है ।
पुण्य-पापमें हर्ष-विषादका निषेध और तात्पर्यकी बात
पुण्य-पाप फलमाहिं, हरख विलखौ मत भाई
यह पुद्गल परजाय, उपजि बिनसै फि र थाई ।।
लाख बातकी बात यही, निश्चय उर लाओ
तोरि सकल जग-दन्द-फंद, नित आतम ध्याओ ।।।।
अन्वयार्थ :(भाई) हे आत्मार्थी प्राणी ! (पुण्य-
फलमाहिं) पुण्यके फलमें (हरख मत) हर्ष न कर और (पाप-
फलमाहिं) पापके फलमें (विलखौ मत) द्वेष न कर [क्योंकि यह
पुण्य और पाप ] (पुद्गल परजाय) पुद्गलकी पर्यायें हैं । [वे ]
(उपजि) उत्पन्न होकर (विनसै) नष्ट हो जाती हैं और (फि र) पुनः
१०६ ][ छहढाला