वास्तवमें (लाख बातकी बात) लाखों बातोंका सार (यही)
इसीप्रकार (लाओ) ग्रहण करो कि (सकल) पुण्य-पापरूप समस्त
(जग-दंद-फंद) जन्म-मरणके द्वन्द [राग-द्वेष ] रूप विकारी-
मलिन भाव (तोरि) तोड़कर (नित) सदैव (आतम ध्याओ) अपने
आत्माका ध्यान करो ।
लाभ है तथा उनके वियोगसे अपनेको हानि है–ऐसा न माने;
क्योंकि पर-पदार्थ सदा भिन्न हैं, ज्ञेयमात्र हैं, उनमें किसीको
अनुकूल-प्रतिकूल अथवा इष्ट-अनिष्ट मानना वह मात्र जीवकी भूल
है; इसलिये पुण्य-पापके फलमें हर्ष-शोक नहीं करना चाहिये ।