Chha Dhala (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 107 of 192
PDF/HTML Page 131 of 216

 

background image
(थाई) उत्पन्न होती हैं । (उर) अपने अन्तरमें (निश्चय) निश्चयसे-
वास्तवमें (लाख बातकी बात) लाखों बातोंका सार (यही)
इसीप्रकार (लाओ) ग्रहण करो कि (सकल) पुण्य-पापरूप समस्त
(जग-दंद-फंद) जन्म-मरणके द्वन्द [राग-द्वेष ] रूप विकारी-
मलिन भाव (तोरि) तोड़कर (नित) सदैव (आतम ध्याओ) अपने
आत्माका ध्यान करो ।
भावार्थ :आत्मार्थी जीवका कर्तव्य है कि धन, मकान,
दुकान, कीर्ति, निरोगी शरीरादि पुण्यके फल हैं, उनसे अपनेको
लाभ है तथा उनके वियोगसे अपनेको हानि है–ऐसा न माने;
क्योंकि पर-पदार्थ सदा भिन्न हैं, ज्ञेयमात्र हैं, उनमें किसीको
अनुकूल-प्रतिकूल अथवा इष्ट-अनिष्ट मानना वह मात्र जीवकी भूल
है; इसलिये पुण्य-पापके फलमें हर्ष-शोक नहीं करना चाहिये ।
चौथी ढाल ][ १०७