Chha Dhala (Hindi). Chauthee dhalka bhed-sangrah.

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जो श्रावक निरतिचार समाधि-मरणको धारण करता है, वह
समतापूर्वक आयु पूर्ण होनेसे योग्तानुसार सोलहवें स्वर्ग तक उत्पन्न
होता है, और वहाँसे आयु पूर्ण होने पर मनुष्यपर्याय प्राप्त करता
है; फि र मुनिपद प्रगट करके मोक्षमें जाता है; इसलिये
सम्यग्दर्शन-ज्ञानपूर्वक चारित्रका पालन करना वह प्रत्येक आत्मार्थी
जीवका कर्तव्य है ।
निश्चय सम्यक्चारित्र ही सच्चा चारित्र है–ऐसी श्रद्धा करना,
तथा उस भूमिकामें जो श्रावक और मुनिव्रतके विकल्प उठते हैं
वह सच्चा चारित्र नहीं; किन्तु चारित्रमें होनेवाला दोष है; किन्तु
उस भूमिकामें वैसा राग आये बिना नहीं रहता और उस
सम्यक्चारित्रमें ऐसा राग निमित्त होता है; उसे सहचर मानकर
व्यवहार सम्यक्चारित्र कहा जाता है । व्यवहार सम्यक्चारित्रको
सच्चा सम्यक्चारित्र माननेकी श्रद्धा छोड़ देना चाहिये ।
चौथी ढालका भेद-संग्रह
काल :–निश्चयकाल और व्यवहारकाल अथवा भूत, भविष्य और
वर्तमान ।
चारित्र– मोह-क्षोभरहित आत्माके शुद्ध परिणाम, भावलिंगी
श्रावकपद तथा भावलिंगी मुनिपद ।
ज्ञानके दोष– संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय (अनिश्चितता) ।
दिशा– पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, वायव्य, नैऋत्य,
अग्निकोण, ऊर्ध्व और अधो–यह दस हैं ।
पर्वचतुष्टय– प्रत्येक मासकी दो अष्टमी तथा दो चतुर्दशी ।
मुनि– समस्त व्यापारसे विरक्त, चार प्रकारकी आराधनामें तल्लीन,
चौथी ढाल ][ १२१