Chha Dhala (Hindi). Chauthee dhalka lakShan sangrah.

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(२) संकल्पी, आरम्भी, उद्योगिनी और विरोधिनी ये चार अथवा
द्रव्यहिंसा और भावहिंसा–यह दो ।
चौथी ढालका लक्षण-संग्रह
अणुव्रत–(१) निश्चयसम्यग्दर्शनसहित चारित्रगुणकी आंशिक शुद्धि
होनेसे (अनन्तानुबन्धी तथा अप्रत्याख्यानीय कषायोंके
अभावपूर्वक) उत्पन्न आत्माकी शुद्धिविशेषको देशचारित्र
कहते हैं । श्रावकदशामें पाँच पापोंका स्थूलरूप-एकदेश
त्याग होता है, उसे अणुव्रत कहा जाता है ।
अतिचार–व्रतकी अपेक्षा रखने पर भी उसका एकदेश भंग होना
सो अतिचार है ।
अनध्यवसाय–(मोह)–‘‘कुछ है,’’ किन्तु क्या है उसके निश्चयरहित
ज्ञानको अनध्यवसाय कहते हैं ।
अनर्थदंड–प्रयोजनरहित मन, वचन, कायकी ओरकी अशुभ-
प्रवृत्ति ।
अनर्थदंडव्रत–प्रयोजनरहित मन, वचन, कायकी ओरकी अशुभ-
प्रवृत्तिका त्याग ।
अवधिज्ञान–द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावकी मर्यादापूर्वक रूपी पदार्थोंको
स्पष्ट जाननेवाला ज्ञान ।
उपभोग–जिसे बारम्बार भोगा जा सके ऐसी वस्तु ।
गुण–द्रव्यके आश्रयसे, उसके सम्पूर्ण भागमें तथा उसकी समस्त
पर्यायोंमें सदैव रह,े उसे गुण अथवा शक्ति कहते हैं ।
गुणव्रत–अणुव्रतोंको तथा मूलगुणोंको पुष्ट करनेवाला व्रत ।
चौथी ढाल ][ १२३