पर–आत्मासे (जीवसे) भिन्न वस्तुओंको पर कहा जाता है ।
परोक्ष–जिसमें इन्द्रियादि परवस्तुएँ निमित्तमात्र हैं, ऐसे ज्ञानको
परोक्ष ज्ञान कहते हैं ।
प्रत्यक्ष– (१) आत्माके आश्रयसे होनेवाला अतीन्द्रिय ज्ञान ।
(२) अक्षप्रति–अक्ष = आत्मा अथवा ज्ञान;
प्रति = (अक्षके) सन्मुख–निकट ।
प्रति + अक्ष = आत्माके सम्बन्धमें हो ऐसा ।
पर्याय–गुणोंके विशेष कार्यको (परिणमनको) पर्याय कहते हैं ।
भोग– वह वस्तु जिसे एक ही बार भोगा जा सके ।
मतिज्ञान–(१) पराश्रयकी बुद्धि छोड़कर दर्शन-उपयोगपूर्वक
स्वसन्मुखतासे प्रगट होनेवाले निज-आत्माके ज्ञानको
मतिज्ञान कहते हैं ।
(२) इन्द्रियाँ और मन जिसमें निमित्तमात्र हैं ऐसे ज्ञानको
मतिज्ञान कहते हैं ।
महाव्रत–हिंसादि पाँच पापोंका सर्वथा त्याग ।
(निश्चयसम्यग्दर्शन-ज्ञान और वीतरागचारित्ररहित मात्र
व्यवहारव्रतके शुभभावको महाव्रत नहीं कहा है; किन्तु
बालव्रत-अज्ञानव्रत कहा है । )
मनःपर्ययज्ञान–द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावकी मर्यादासे दूसरेके मनमें
रहे हुए सरल अथवा गूढ़ रूपी पदार्थोंको जाननेवाला
ज्ञान ।
केवलज्ञान– जो तीनकाल और तीनलोकवर्ती सर्व पदार्थोंको
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