हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह–इन पाँच पापोंसे
भावपूर्वक विरक्त होनेको व्रत कहते हैं । (व्रत सम्यग्दर्शन
होनेके पश्चात् होते हैं और आंशिक वीतरागतारूप
निश्चयव्रत सहित व्यवहारव्रत होते हैं । )
शिक्षाव्रत–मुनिव्रत पालन करनेकी शिक्षा देनेवाला व्रत ।
श्रुतज्ञान–(१) मतिज्ञानसे जाने हुए पदार्थोंके सम्बन्धमें अन्य
पदार्थोंको जाननेवाले ज्ञानको श्रुतज्ञान कहते हैं ।
(२) आत्माकी शुद्ध अनुभूतिरूप श्रुतज्ञानको भावश्रुतज्ञान
कहते हैं ।
संन्यास–(संल्लेखना) आत्माका धर्म समझकर अपनी शुद्धताके
लिये कषायोंको और शरीरको कृश करना (शरीरकी
ओरका लक्ष छोड़ देना) सो समाधि अथवा संल्लेखना
कहलाती है ।
संशय–विरोध सहित अनेक प्रकारोंका अवलम्बन करनेवाला ज्ञान
जैसे कि–यह सीप होगी या चाँदी ? आत्मा अपना ही कार्य
कर सकता है या परका भी ? देव-शास्त्र-गुरु, जीवादि
सात तत्त्व आदिका स्वरूप ऐसा ही होगा ? अथवा जैसा
अन्यमतमें कहा है वैसा ? निमित्त अथवा शुभराग द्वारा
आत्माका हित हो सकता है या नहीं ?
चौथी ढालका अन्तर-प्रदर्शन
१. दिग्व्रतकी मर्यादा तो जीवनपर्यंतके लिये है; किन्तु
देशव्रतकी मर्यादा घड़ी, घण्टा आदि निश्चित किये गये
समय तककी है ।
१२६ ][ छहढाला