भोगोपभोगपरिमाणव्रतमें किया जाता है ।
अन्न-जल-खाद्य और स्वाद्य –इन चारों आहारोंका सर्वथा
त्याग होता है । प्रोषध-उपवासमें आरम्भ, विषय-कषाय
और चारों आहारोंका त्याग तथा उसके अगले दिन और
पारणेके दिन अर्थात् अगले-पिछले दिन भी एकाशन किया
जाता है ।
व्यवहारसे भी नहीं भोग सकता; किन्तु मोह द्वारा, मैं इसे
भोगता हूँ –ऐसा मानता है और तत्सम्बन्धी रागको, हर्ष-
शोकको भोगता है । यह बतलानेके लिये उसका कथन
करना सो व्यवहार है । )
उपभोग, केवलज्ञान, गुणव्रत, दिग्व्रत, दुःश्रुति, देशव्रत,
देशप्रत्यक्ष, परिग्रह-परिमाणाणुव्रत, परोक्ष, पापोपदेश, प्रत्यक्ष,
प्रमादचर्या, प्रोषध उपवास, ब्रह्मचर्याणुव्रत, भोगोपभोग-
परिमाणव्रत, भोग, मतिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, विपर्यय, व्रत,
शिक्षाव्रत, श्रुतज्ञान, सकलप्रत्यक्ष, सम्यक्ज्ञान, सत्याणुव्रत,