सामायिक, संशय, स्वस्त्रीसंतोषव्रत तथा हिंसादान आदिके
लक्षण बताओ ।
२. अणुव्रत, अनर्थदंडव्रत, काल, गुणव्रत, देशप्रत्यक्ष, दिशा,
परोक्ष, पर्व, पात्र, प्रत्यक्ष, विकथा, व्रत, रोगत्रय, शिक्षाव्रत,
सम्यक्चारित्र, सम्यग्ज्ञानके दोष और संल्लेखना
दोष–आदिके भेद बतलाओ ।
३. अणुव्रत, अनर्थदंडव्रत, गुणव्रत–ऐसे नाम रखनेका कारण;
अविचल ज्ञानप्राप्ति, ग्रैवेयक तक जाने पर भी सुखका अभाव,
दिग्व्रत, देशव्रत, पापोपदेश–ऐसे नामोंका कारण, पुण्य-
पापके फलमें हर्ष-शोकका निषेध, शिक्षाव्रत नामका कारण,
सम्यग्ज्ञान, ज्ञान, ज्ञानोंकी परोक्षता-प्रत्यक्षता-देशप्रत्यक्षता
और सकलप्रत्यक्षता आदिके कारण बतलाओ ।
४. अणुव्रत और महाव्रतमें, दिग्व्रत और देशव्रतमें, परिग्रह-
परिमाणव्रत और भोगोपभोगपरिमाणव्रतमें, प्रोषध और
उपवासमें तथा प्रोषधोपवासमें, भोग और उपभोगमें, यम और
नियममें, ज्ञानी और अज्ञानीके कर्मनाशमें तथा सम्यग्दर्शन
और सम्यग्ज्ञानमें क्या अन्तर है–वह बतलाओ ।
५. अनध्यवसाय, मनुष्यपर्याय आदिकी दुर्लभता, विपर्यय, विषय-
इच्छा, सम्यग्ज्ञान और संशयके दृष्टान्त दो ।
६. अनर्थदण्डोंका पूर्ण परिमाण, अविचल सुखका उपाय,
आत्मज्ञानकी प्राप्तिका उपाय, जन्म-मरण दूर करनेका
उपाय, दर्शन और ज्ञानमें पहली उत्पत्ति; धनादिकसे लाभ
न होना, निरतिचार श्रावकव्रत-पालनसे लाभ,
ब्रह्मचर्याणुव्रतीका विचार, भेदविज्ञानकी आवश्यकता,
१२८ ][ छहढाला