पाँचवीं ढाल
(चाल छन्द)
भावनाओंके चिंतवनका कारण, उसके अधिकारी और
उसका फल
मुनि सकलव्रती बड़भागी, भव-भोगनतैं वैरागी ।
वैराग्य उपावन माई, चिन्तैं अनुप्रेक्षा भाई ।।१।।
अन्वयार्थ : – (भाई) हे भव्य जीव ! (सकलव्रती)
महाव्रतोंके धारक (मुनि) भावलिंगी मुनिराज (बड़भागी) महान
पुरुषार्थी हैं; क्योंकि वे (भव-भोगनतैं) संसार और भोगोंसे (वैरागी)
विरक्त होते हैं और (वैराग्य) वीतरागताको (उपावन) उत्पन्न
करनेके लिये (माई) माता समान (अनुप्रेक्षा) बारह भावनाओंका
(चिन्तैं) चिंतवन करते हैं ।
भावार्थ : – पाँच महाव्रतोंको धारण करनेवाले भावलिंगी
मुनिराज महापुरुषार्थवान हैं; क्योंकि वे संसार, शरीर और भोगोंसे
अत्यन्त विरक्त होते हैं और जिस प्रकार कोई माता पुत्रको जन्म
१३० ][ छहढाला