इसलिये मुनिराज इन बारह भावनाओंका चिंतवन करते हैं
प्रकार इन बारह भावनाओंका ] (चिंतत) चिंतवन करनेसे (सम
सुख) समतारूपी सुख (जागै) प्रगट होता है । (जब ही) जब
(जिय) जीव (आतम) आत्मस्वरूपको (जानै) जानता है (तब ही)
तभी (जीव) जीव (शिवसुख) मोक्षसुखको (ठानै) प्राप्त करता है ।
समता-शांतिरूपी सुख प्रगट हो जाता है–बढ़ जाता है । जब यह
जीव आत्मस्वरूपको जानता है, तब पुरुषार्थ बढ़ाकर परपदार्थोंसे
सम्बन्ध छोड़कर परमानन्दमय स्वस्वरूपमें लीन होकर समतारसका
पान करता है और अंतमें मोक्षसुख प्राप्त करता है