Chha Dhala (Hindi). Gatha: 2: bhAvanAokA phal aur mokShasukhkee praptikA samay (Dhal 5).

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देती है; उसीप्रकार यह बारह भावनाएँ वैराग्य उत्पन्न करती हैं;
इसलिये मुनिराज इन बारह भावनाओंका चिंतवन करते हैं
।।।।
भावनाओंका फल और मोक्षसुखकी प्राप्तिका समय
इन चिन्तत समसुख जागै, जिमि ज्वलन पवनके लागै
जबही जिय आतम जानै, तबही जिय शिवसुख ठानै ।।।।
अन्वयार्थ :(जिमि) जिसप्रकार (पवनके) वायुके
(लागै) लगनेसे (ज्वलन) अग्नि (जागै) भभक उठती है, [उसी-
प्रकार इन बारह भावनाओंका ] (चिंतत) चिंतवन करनेसे (सम
सुख) समतारूपी सुख (जागै) प्रगट होता है । (जब ही) जब
(जिय) जीव (आतम) आत्मस्वरूपको (जानै) जानता है (तब ही)
तभी (जीव) जीव (शिवसुख) मोक्षसुखको (ठानै) प्राप्त करता है ।
भावार्थ :जिसप्रकार वायु लगनेसे अग्नि एकदम भभक
उठती है; उसीप्रकार इन बारह भावनाओंका बारंबार चिंतवन करनेसे
समता-शांतिरूपी सुख प्रगट हो जाता है–बढ़ जाता है । जब यह
जीव आत्मस्वरूपको जानता है, तब पुरुषार्थ बढ़ाकर परपदार्थोंसे
सम्बन्ध छोड़कर परमानन्दमय स्वस्वरूपमें लीन होकर समतारसका
पान करता है और अंतमें मोक्षसुख प्राप्त करता है
।।।।
पाँचवीं ढाल ][ १३१