मार डालता है; उसीप्रकार–काल अर्थात् मृत्यु नाश करता है ।
चिंतामणि आदि मणि, मंत्र और जंत्र-तंत्रादि कोई भी मृत्युसे नहीं
बचा सकता ।
कर सकनेमें समर्थ नहीं है; इसलिये परसे रक्षाकी आशा करना
व्यर्थ है । सर्वत्र-सदैव एक निज आत्मा ही अपना शरण है । आत्मा
निश्चयसे मरता ही नहीं; क्योंकि वह अनादि-अनन्त है–ऐसा
स्वोन्मुखतापूर्वक चिंतवन करके सम्यग्दृष्टि जीव वीतरागताकी वृद्धि
करता है, यह ‘‘अशरण भावना’’ है
परावर्तन पाँच प्रकारसे परिभ्रमण (करै है) करता है । (संसार)