Chha Dhala (Hindi). Gatha: 5: 3. sansar bhAvanA (Dhal 5).

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(पक्षियोंके राजा) आदि हैं, उन सबका–जिसप्रकार हिरनको सिंह
मार डालता है; उसीप्रकार–काल अर्थात् मृत्यु नाश करता है ।
चिंतामणि आदि मणि, मंत्र और जंत्र-तंत्रादि कोई भी मृत्युसे नहीं
बचा सकता ।
यहाँ ऐसा समझना कि निज आत्मा ही शरण है; उसके
अतिरिक्त अन्य कोई शरण नहीं है । कोई जीव अन्य जीवकी रक्षा
कर सकनेमें समर्थ नहीं है; इसलिये परसे रक्षाकी आशा करना
व्यर्थ है । सर्वत्र-सदैव एक निज आत्मा ही अपना शरण है । आत्मा
निश्चयसे मरता ही नहीं; क्योंकि वह अनादि-अनन्त है–ऐसा
स्वोन्मुखतापूर्वक चिंतवन करके सम्यग्दृष्टि जीव वीतरागताकी वृद्धि
करता है, यह ‘‘अशरण भावना’’ है
।।।।
३. संसार भावना. संसार भावना
चहुँगति दुःख जीव भरै है, परिवर्तन पंच करै है
सबविधि संसार असारा, यामें सुख नाहीं लगारा ।।।।
अन्वयार्थ :(जीव) जीव (चहुँगति) चार गतिमें
(दुःख) दुःख (भरै है) भोगता है और (परिवर्तन पंच) पाँच
परावर्तन पाँच प्रकारसे परिभ्रमण (करै है) करता है । (संसार)
१३४ ][ छहढाला