Chha Dhala (Hindi). Gatha: 6: 4. ekatva bhAvanA (Dhal 5).

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संसार (सबविधि) सर्व प्रकारसे (असारा) साररहित है, (यामें)
इसमें (सुख) सुख (लगारा) लेशमात्र भी (नाहिं) नहीं है ।
भावार्थ :जीवकी अशुद्ध पर्याय वह संसार है । अज्ञानके
कारण जीव चार गतिमें दुःख भोगता है और पाँच (द्रव्य, क्षेत्र,
काल, भव तथा भाव) परावर्तन करता रहता है; किन्तु कभी शांति
प्राप्त नहीं करता; इसलिए वास्तवमें संसारभाव सर्वप्रकारसे
साररहित है, उसमें किंचित्मात्र सुख नहीं है; क्योंकि जिसप्रकार
सुखकी कल्पना की जाती है, वैसा सुखका स्वरूप नहीं है और
जिसमें सुख मानता है वह वास्तवमें सुख नहीं है; किन्तु वह
परद्रव्यके आलम्बनरूप मलिन भाव होनेसे आकुलता उत्पन्न
करनेवाला भाव है । निज आत्मा ही सुखमय है, उसके ध्रुवस्वभावमें
संसार है ही नहीं –ऐसा स्वोन्मुखतापूर्वक चिंतवन करके सम्यग्दृष्टि
जीव वीतरागतामें वृद्धि करता है, यह ‘‘संसार भावना’’ है
।।।।
४. एकत्व भावना. एकत्व भावना
शुभ-अशुभ करमफल जेते, भोगै जिय एक हि तेते
सुत-दारा होय न सीरी, सब स्वारथके हैं भीरी ।।।।
पाँचवीं ढाल ][ १३५