(भेला) एकरूप (नहिं) नहीं हैं, (भिन्न-भिन्न) पृथक्-पृथक् हैं, (तो)
तो फि र (प्रगट) जो बाह्यमें प्रगटरूपसे (जुदे) पृथक् दिखाई देते
हैं ऐसे (धन) लक्ष्मी, (धामा) मकान, (सुत) पुत्र और (रामा) स्त्री
आदि (मिलि) मिलकर (इक) एक (क्यों) कैसे (ह्वै) हो सकते
हैं?
बिलकुल भिन्न-भिन्न हैं; उसीप्रकार यह जीव और शरीर भी मिले
हुए-एकाकार दिखाई देते हैं तथापि वे दोनों अपने-अपने
स्वरूपादिकी अपेक्षासे (स्वद्रव्य-क्षेत्र-काल-भावसे) बिलकुल
पृथक्-पृथक् हैं, तो फि र प्रगटरूपसे भिन्न दिखाई देनेवाले ऐसे
मोटरगाड़ी, धन, मकान, बाग, पुत्र-पुत्री, स्त्री आदि अपने साथ
कैसे एकमेक हो सकते हैं ? अर्थात् स्त्री-पुत्रादि कोई भी परवस्तु
अपनी नहीं है–इसप्रकार सर्व पदार्थोंको अपनेसे भिन्न जानकर