Chha Dhala (Hindi). Gatha: 8: 6. ashuchi bhAvanA (Dhal 5).

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स्वसन्मुखतापूर्वक सम्यग्दृष्टि जीव वीतरागताकी वृद्धि करता है, यह
‘‘अन्यत्व भावना’’ है
।।।।
६. अशुचि भावना. अशुचि भावना
पल रुधिर राध मल थैली, कीकस वसादितैं मैली
नव द्वार बहैं घिनकारी, अस देह करे किम यारी ।।।।
अन्वयार्थ :जो (पल) माँस (रुधिर) रक्त (राध)
पीव और (मल) विष्टाकी (थैली) थैली है, (कीकस) ही,
(वसादितैं) चरबी आदिसे (मैली) अपवित्र है और जिसमें
(घिनकारी) घृणा-ग्लानि उत्पन्न करनेवाले (नव द्वार) नौ दरवाजे
(बहैं) बहते हैं, (अस) ऐसे (देह) शरीरमें (यारी) प्रेम-राग
(किमि) कैसे (करै) किया जा सकता है?
भावार्थ :यह शरीर तो माँस, रक्त पीव, विष्टा आदिकी
थैली है और वह हयिाँ, चरबी आदिसे भरा होनेके कारण अपवित्र
है तथा नौ द्वारोंसे मैल बाहर निकलता है, ऐसे शरीरके प्रति मोह-
राग कैसे किया जा सकता है ? यह शरीर ऊपरसे तो मक्खीके
पंख समान पतली चमड़ीमें मढ़ा हुआ है; इसलिये बाहरसे सुन्दर
१३८ ][ छहढाला