Chha Dhala (Hindi).

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(दुखकार) दुःखदायक है; इसलिये (बुधिवन्त) बुद्धिमान (तिन्हैं)
उसे (निरवेरे) दूर करें।
भावार्थ :विकारी शुभाशुभभावरूप जो अरूपी दशा
जीवमें होती है, वह भाव-आस्रव है और उस समय नवीन
कर्मयोग्य रजकणोंका स्वयं-स्वतः आना (आत्माके साथ एक क्षेत्रमें
आगमन होना) सो द्रव्य-आस्रव है । [उसमें जीवकी अशुद्ध पर्यायें
निमित्तमात्र हैं । ]
पुण्य और पाप दोनों आस्रव और बन्धके भेद हैं
पुण्य– दया, दान, भक्ति, पूजा, व्रत आदि शुभराग सरागी
जीवको होते हैं, वे अरूपी अशुभभाव हैं और वह भावपुण्य है तथा
उस समय नवीन कर्मयोग्य रजकणोंका स्वयं-स्वतः आना
(आत्माके साथ एक क्षेत्रमें आगमन होना) सो द्रव्यपुण्य है । उसमें
जीवकी अशुद्धपर्याय निमित्तमात्र है ।
पाप–हिंसा, असत्य, चोरी इत्यादि जो अशुभभाव हैं वह
भावपाप हैं, और उस समय कर्मयोग्य पुद्गलोंका आगमन होना
सो द्रव्यपाप है। [उसमें जीवकी अशुद्ध पर्यायें निमित्त मात्र हैं । ]
परमार्थसे (वास्तवमें) पुण्य-पाप (शुभाशुभ) आत्माको
अहितकर हैं, तथा वह आत्माकी क्षणिक अशुद्ध अवस्था है । द्रव्य
पुण्य-पाप तो परवस्तु हैं, वे कहीं आत्माका हित-अहित नहीं कर
सकते–ऐसा यथार्थ निर्णय प्रत्येक ज्ञानी जीवको होता है और
इसप्रकार विचार करके सम्यग्दृष्टि जीव स्वद्रव्यके अवलम्बनके
बलसे जितने अंशमें आस्रवभावको दूर करता है, उतने अंशमें
उसे वीतरागताकी वृद्धि होती है–उसे ‘‘आस्रव भावना’’ कहते
हैं
।।।।
१४० ][ छहढाला