Chha Dhala (Hindi). Gatha: 12: 10. lok bhAvanA (Dhal 5).

< Previous Page   Next Page >


Page 143 of 192
PDF/HTML Page 167 of 216

 

background image
पूर्णतारूप मोक्ष प्राप्त करता है । ऐसा जानता हुआ सम्यग्दृष्टि जीव
स्वद्रव्यके आलम्बन द्वारा जो शुद्धिकी वृद्धि करता है, यह ‘‘निर्जरा
भावना’’ है
।।११।।
१०. लोक भावना
किनहू न करौ न धरै को, षड्द्रव्यमयी न हरै को
सो लोकमांहि बिन समता, दुख सहै जीव नित भ्रमता ।।१२।।
अन्वयार्थ :इस लोकको (किनहू) किसीने (न करौ)
बनाया नहीं है, (को) किसीने (न धरै) टिका नहीं रखा है, (को)
कोई (न हरै) नाश नहीं कर सकता; [और यह लोक ]
(षड्द्रव्यमयी) छह प्रकारके द्रव्यस्वरूप है–छह द्रव्योंसे परिपूर्ण है
(सो) ऐसे (लोकमांहि) लोकमें (बिन समता) वीतरागी समता बिना
(नित) सदैव (भ्रमता) भटकता हुआ (जीव) जीव (दुख सहै)
दुःख सहन करता है ।
भावार्थ :ब्रह्मा आदि किसीने इस लोकको बनाया नहीं
है; विष्णु या शेषनाग आदि किसीने इसे टिका नहीं रखा है तथा
महादेव आदि किसीसे यह नष्ट नहीं होता; किन्तु यह छह द्रव्यमय
पाँचवीं ढाल ][ १४३