Chha Dhala (Hindi). Gatha: 14: 12. dharm bhAvanA (Dhal 5).

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भावार्थ :मिथ्यादृष्टि जीव मंद कषायके कारण अनेक-
बार ग्रैवेयक तक उत्पन्न होकर अहमिन्द्रपदको प्राप्त हुआ है; परन्तु
उसने एक बार भी सम्यग्ज्ञान प्राप्त नहीं किया; क्योंकि सम्यग्ज्ञान
प्राप्त करना वह अपूर्व है; उसे तो स्वोन्मुखताके अनन्त पुरुषार्थ
द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है और ऐसा होने पर विपरीत
अभिप्राय आदि दोषोंका अभाव होता है ।
सम्यग्दर्शन-ज्ञान आत्माके आश्रयसे ही होते हैं । पुण्यसे,
शुभरागसे, जड़ कर्मादिसे नहीं होते । इस जीवने बाह्य संयोग,
चारों गतिके लौकिक पद अनन्तबार प्राप्त किये हैं; किन्तु निज
आत्माका यथार्थ स्वरूप स्वानुभव द्वारा प्रत्यक्ष करके उसे कभी
नहीं समझा, इसलिये उसकी प्राप्ति अपूर्व है ।
बोधि अर्थात् निश्चयसम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रकी एकता; उस
बोधिकी प्राप्ति प्रत्येक जीवको करना चाहिये । सम्यग्दृष्टि जीव
स्वसन्मुखतापूर्वक ऐसा चिंतवन करता है और अपनी बोधि और
शुद्धिकी वृद्धिका बारम्बार अभ्यास करता है, यह ‘‘बोधिदुर्लभ
भावना’’ है
।।१३।।
१२. धर्म भावना. धर्म भावना
जो भाव मोहतैं न्यारे, दृग-ज्ञान-व्रतादिक सारे
सो धर्म जबै जिय धारै, तब ही सुख अचल निहारे ।।१४।।
पाँचवीं ढाल ][ १४५