Chha Dhala (Hindi). Panchavee dhalka sarAnsh.

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भावार्थ :निश्चयरत्नत्रयस्वरूप धर्मको भावलिंगी दिगम्बर
जैन मुनि ही अंगीकार करते हैं–अन्य कोई नहीं । अब, आगे उन
मुनियोंके सकलचारित्रका वर्णन किया जाता है । हे भव्यों ! उन
मुनिवरोंका चारित्र सुनो और अपने आत्माका अनुभव करो
।।१५।।
पाँचवीं ढालका सारांश
यह बारह भावनाएँ चारित्रगुणकी आंशिक शुद्ध पर्यायें हैं;
इसलिये वे सम्यग्दृष्टि जीवको ही हो सकती हैं । सम्यक् प्रकारसे
यह बारह प्रकारकी भावनाएँ भानेसे वीतरागताकी वृद्धि होती है ।
इन बारह भावनाओंका चिंतवन मुख्यरूपसे तो वीतरागी दिगम्बर
जैन मुनिराजको ही होता है तथा गौणरूपसे सम्यग्दृष्टिको भी होता
है । जिसप्रकार पवनके लगनेसे अग्नि भभक उठती है; उसीप्रकार
अन्तरंग परिणामोंकी शुद्धता सहित इन भावनाओंका चिंतवन
करनेसे समताभाव प्रगट होता है और उससे मोक्षसुख प्रगट होता
है । स्वोन्मुखतापूर्वक इन भावनाओंसे संसार, शरीर और भोगोंके
प्रति विशेष उपेक्षा होती है और आत्माके परिणामोंकी निर्मलता
बढ़ती है ।
इन बारह भावनाओंका स्वरूप विस्तारसे जानना हो तो
‘‘स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा,’’ ‘‘ज्ञानार्णव’’ आदि ग्रन्थोंका अवलोकन
करना चाहिये ।
अनित्यादि चिंतवन द्वारा शरीरादिको बुरा जानकर,
अहितकारी मानकर उनसे उदास होनेका नाम अनुप्रेक्षा नहीं है;
क्योंकि यह तो जिसप्रकार पहले किसीको मित्र मानता था, तब
उसके प्रति राग था और फि र उसके अवगुण देखकर उसके प्रति
उदासीन हो गया । उसीप्रकार पहले शरीरादिसे राग था, किन्तु
पाँचवीं ढाल ][ १४७