Chha Dhala (Hindi). Panchavee dhalka lakShan sangrah.

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पाँचवीं ढालका लक्षण-संग्रह
अनुप्रेक्षा (भावना) :–भेदज्ञानपूर्वक संसार, शरीर और भोगादिके
स्वरूपका बारम्बार विचार करके उनके प्रति उदासीनभाव
उत्पन्न करना ।
अशुभ उपयोग :–हिंसादिमें अथवा कषाय, पाप और व्यसनादि
निन्दापात्र कार्योंमें प्रवृत्ति ।
असुरकुमार :–असुर नामक देवगति-नामकर्मके उदयवाले
भवनवासी देव ।
कर्म :–आत्मा रागादि विकाररूपसे परिणमित हो तो उसमें
निमित्तरूप होनेवाले जड़कर्म-द्रव्यकर्म ।
गति :–नरक, तिर्यंच, देव और मनुष्यरूप जीवकी अवस्थाविशेषको
गति कहते हैं, उसमें गति नामक नामकर्म निमित्त है ।
ग्रैवेयक :–सोलहवें स्वर्गसे ऊपर और प्रथम अनुदिशसे नीचे,
देवोंको रहनेके स्थान ।
देव :–देवगतिको प्राप्त जीवोंको देव कहते हैं; वे अणिमा, महिमा,
लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व –इन
आठ सिद्धि (ऐश्वर्य) वाले होते हैं; उनके मनुष्य समान
आकारवाला सप्त कुधातु रहित सुन्दर शरीर होता है ।
धर्म :–दुःखसे मुक्ति दिलानेवाला निश्चयरत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग;
जिससे आत्मा मोक्ष प्राप्त करता है । (रत्नत्रय अर्थात्
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र । )
पाँचवीं ढाल ][ १४९