Chha Dhala (Hindi).

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धर्मके भिन्न-भिन्न लक्षण :–१. वस्तुका स्वभाव वह धर्म; २.
अहिंसा; ३. उत्तमक्षमादि दस लक्षण; ४. निश्चयरत्नत्रय ।
पाप :–मिथ्यादर्शन, आत्माकी विपरीत समझ, हिंसादि अशुभभाव
सो पाप है ।
पुण्य :–दया, दान, पूजा, भक्ति, व्रतादिके शुभभाव, मंदकषाय वह
जीवके चारित्रगुणकी अशुद्ध दशा है । पुण्य-पाप दोनों
आस्रव हैं, बन्धनके कारण हैं ।
बोधि :–सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रकी एकता ।
मुनि (साधु परमेष्ठी) :–समस्त व्यापारसे विमुक्त, चार प्रकारकी
आराधनामें सदा लीन, निर्ग्रंथ और निर्मोह ऐसे सर्व साधु
होते हैं । समस्त भावलिंगी मुनियोंको नग्न दिगम्बरदशा
तथा साधुके २८ मूलगुण होते हैं ।
योग :–मन, वचन, कायाके निमित्तसे आत्माके प्रदेशोंका कम्पन
होना उसे द्रव्ययोग कहते हैं । कर्म और नोकर्मके ग्रहणमें
निमित्तरूप जीवकी शक्तिको भावयोग कहते हैं ।
शुभ उपयोग :–देवपूजा, स्वाध्याय, दया, दानादि, अणुव्रत-
महाव्रतादि शुभभावरूप आचरण ।
सकलव्रत :– ५- महाव्रत, ५- समिति, ६- आवश्यक, ५-
इन्द्रियजय, ६- केशलोंच, अस्नान, भूमिशयन,
अदन्तधोवन, खड़े-खड़े आहार, दिनमें एक बार आहार-
जल तथा नग्नता आदिका पालन–सो व्यवहारसे सकलव्रत
है और रत्नत्रयकी एकतारूप आत्मस्वभावमें स्थिर होना सो
निश्चयसे सकलव्रत है ।
१५० ][ छहढाला