सकलव्रती :–(सकलव्रतोंके धारक) रत्नत्रयकी एकतारूप स्वभावमें
स्थिर रहनेवाले महाव्रतके धारक दिगम्बर मुनि वे निश्चय
सकलव्रती हैं ।
अन्तर-प्रदर्शन
१. अनुप्रेक्षा और भावना पर्यायवाची शब्द हैं; उनमें कोई अन्तर
नहीं है ।
२. धर्मभावनामें तो बारम्बार विचारकी मुख्यता है और धर्ममें निज
गुणोंमें स्थिर होनेकी प्रधानता है ।
३. व्यवहार सकलव्रतमें तो पापोंका सर्वदेश त्याग किया जाता
है और व्यवहार अणुव्रतमें उनका एकदेश त्याग किया जाता
है; इतना इन दोनोंमें अन्तर है ।
पाँचवीं ढालकी प्रश्नावली
१. अनित्यभावना, अन्यत्वभावना, अविपाकनिर्जरा, अकामनिर्जरा,
अशरणभावना, अशुचिभावना, आस्रवभावना, एकत्वभावना,
धर्मभावना, निश्चयधर्म, बोधिदुर्लभभावना, लोकभावना,
संवरभावना, सकामनिर्जरा, सविपाकनिर्जरा आदिके लक्षण
समझाओ ।
२. सकलव्रतमें और विकलव्रतमें, अनुप्रेक्षामें और भावनामें, धर्ममें
और धर्मद्रव्यमें, धर्ममें और धर्मभावनामें तथा एकत्वभावना
और अन्यत्वभावनामें अन्तर बतलाओ ।
३. अनुप्रेक्षा, अनित्यता, अन्यत्व और अशरणपनेका स्वरूप
दृष्टान्त सहित समझाओ ।
पाँचवीं ढाल ][ १५१