प्रकारके (बाहिर) बहिरंग (संग) परिग्रहसे (टलैं) रहित होते हैं ।
(परमाद) प्रमाद-असावधानी (तजि) छोड़कर (चौकर) चार हाथ
(मही) जमीन (लखि) देखकर (ईर्या) ईया (समिति तैं) समितिसे
(चलैं) चलते हैं और (जिनके) जिन मुनिराजोंके (मुखचन्द्र तैं)
मुखरूपी चन्द्रसे (जग सुहितकर) जगतका सच्चा हित करनेवाला
तथा (सब अहितकर) सर्व अहितका नाश करनेवाला, (श्रुति
सुखद) सुननेमें प्रिय लगे ऐसा (सब संशय) समस्त संशयोंका (हरैं)
नाशक और (भ्रम रोगहर) मिथ्यात्वरूपी रोगको हरनेवाला (वचन-
अमृत) वचनरूपी अमृत (झरैं) झरता है ।
परिग्रहत्याग-महाव्रत होता है । दिनमें सावधानीपूर्वक चार हाथ