Chha Dhala (Hindi).

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अन्वयार्थ :[वे वीतरागी दिगम्बर जैन मुनि ]
(चतुर्दस भेद) चौदह प्रकारके (अन्तर) अंतरंग तथा (दसधा) दस
प्रकारके (बाहिर) बहिरंग (संग) परिग्रहसे (टलैं) रहित होते हैं ।
(परमाद) प्रमाद-असावधानी (तजि) छोड़कर (चौकर) चार हाथ
(मही) जमीन (लखि) देखकर (ईर्या) ईया (समिति तैं) समितिसे
(चलैं) चलते हैं और (जिनके) जिन मुनिराजोंके (मुखचन्द्र तैं)
मुखरूपी चन्द्रसे (जग सुहितकर) जगतका सच्चा हित करनेवाला
तथा (सब अहितकर) सर्व अहितका नाश करनेवाला, (श्रुति
सुखद) सुननेमें प्रिय लगे ऐसा (सब संशय) समस्त संशयोंका (हरैं)
नाशक और (भ्रम रोगहर) मिथ्यात्वरूपी रोगको हरनेवाला (वचन-
अमृत) वचनरूपी अमृत (झरैं) झरता है ।
भावार्थ :वीतरागी मुनि चौदह प्रकारके अन्तरंग और
दस प्रकारके बहिरंग परिग्रहोंसे रहित होते हैं; इसलिये उनको (५)
परिग्रहत्याग-महाव्रत होता है । दिनमें सावधानीपूर्वक चार हाथ
जग-सुहितकर सब अहितहर, श्रुति सुखद सब संशय हरैं
भ्रमरोग-हर जिनके वचन, मुखचन्द्रतैं अमृत झरैं ।।।।
१५६ ][ छहढाला