Chha Dhala (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 157 of 192
PDF/HTML Page 181 of 216

 

background image
आगेकी भूमि देखकर चलनेका विकल्प उठे वह (१) ईर्या समिति
है तथा जिसप्रकार चन्द्रसे अमृत झरता है; उसीप्रकार मुनिके
मुखचन्द्रसे जगतका हित करनेवाले, सर्व अहितका नाश करनेवाले,
सुननेमें सुखकर, सर्वप्रकारकी शंकाओंको दूर करनेवाले और
मिथ्यात्व (विपरीतता या सन्देह) रूपी रोगका नाश करनेवाले ऐसे
अमृतवचन निकलते हैं । इसप्रकार समितिरूप बोलनेका विकल्प
मुनिको उठता है वह (२) भाषा समिति है ।
–उपर्युक्त भावार्थमें आये हुए वाक्योंको बदलनेसे क्रमशः
परिग्रहत्याग-महाव्रत तथा ईर्या समिति और भाषा समितिका लक्षण
हो जायेगा ।
प्रश्न–सच्ची समिति किसे कहते हैं ?
उत्तर–पर जीवोंकी रक्षाके हेतु यत्नाचार प्रवृत्तिको अज्ञानी
जीव समिति मानते हैं; किन्तु हिंसाके परिणामोंसे तो पापबन्ध होता
है । यदि रक्षाके परिणामोंसे संवर कहोगे तो पुण्यबन्धका कारण
क्या सिद्घ होगा ?
तथा मुनि एषणा समितिमें दोषको टालते हैं; वहाँ रक्षाका
प्रयोजन नहीं है; इसलिये रक्षाके हेतु ही समिति नहीं है । तो फि र
समिति किसप्रकार होती है ? मुनिको किंचित् राग होने पर
गमनादि क्रियाएँ होती हैं, वहाँ उन क्रियाओंमें अति आसक्तिके
अभावसे प्रमादरूप प्रवृत्ति नहीं होती तथा दूसरे जीवोंको दुःखी
करके अपना गमनादि प्रयोजन सिद्ध नहीं करते; इसलिये उनसे
स्वयं दयाका पालन होता है– इसप्रकार सच्ची समिति है ।
(
मोक्षमार्ग-प्रकाशक (देहली) पृ. ३३५) ।।।।
ईर्या भाषा एषणा, पुनि क्षेपण आदान
प्रतिष्ठापना जुतक्रिया, पाँचों समिति विधान ।।
छठवीं ढाल ][ १५७