है तथा जिसप्रकार चन्द्रसे अमृत झरता है; उसीप्रकार मुनिके
मुखचन्द्रसे जगतका हित करनेवाले, सर्व अहितका नाश करनेवाले,
सुननेमें सुखकर, सर्वप्रकारकी शंकाओंको दूर करनेवाले और
मिथ्यात्व (विपरीतता या सन्देह) रूपी रोगका नाश करनेवाले ऐसे
अमृतवचन निकलते हैं । इसप्रकार समितिरूप बोलनेका विकल्प
मुनिको उठता है वह (२) भाषा समिति है ।
हो जायेगा ।
उत्तर–पर जीवोंकी रक्षाके हेतु यत्नाचार प्रवृत्तिको अज्ञानी
है । यदि रक्षाके परिणामोंसे संवर कहोगे तो पुण्यबन्धका कारण
क्या सिद्घ होगा ?
समिति किसप्रकार होती है ? मुनिको किंचित् राग होने पर
गमनादि क्रियाएँ होती हैं, वहाँ उन क्रियाओंमें अति आसक्तिके
अभावसे प्रमादरूप प्रवृत्ति नहीं होती तथा दूसरे जीवोंको दुःखी
करके अपना गमनादि प्रयोजन सिद्ध नहीं करते; इसलिये उनसे
स्वयं दयाका पालन होता है– इसप्रकार सच्ची समिति है ।
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