करनेके हेतुसे [आहारके ] (छयालीस) छियालीस (दोष बिना)
दोषोंको दूर करके (अशनको) भोजनको (लैं) ग्रहण करते
हैं
(उपकरण) साधन पींछीको (लखिकैं) देखकर (गहैं) ग्रहण करते
हैं [और ] (लखिकैं) देखकर (धरैं) रखते हैं [और ] (मूत्र) पेशाब
(श्लेष्म) श्लेष्म (तन-मल) शरीरके मैलको (निर्जन्तु) जीवरहित
(थान) स्थान (विलोकि) देखकर (परिहरैं) त्यागते हैं ।
रसोंका त्याग करके [अथवा स्वादका राग न करके ] शरीरको पुष्ट
करनेका अभिप्राय न रखकर, मात्र तपकी वृद्धि करनेके लिये
आहार ग्रहण करते हैं; इसलिये उनको (३) एषणासमिति होती
है । पवित्रताके साधन कमण्डलको, ज्ञानके साधन शास्त्रको और
संयमके साधन पींछीको–जीवोंकी विराधना बचानेके हेतु– देखभाल
कर रखते हैं तथा उठाते हैं; इसलिये उनको (४) आदान-निक्षेपण
समिति होती है । मल-मूत्र-कफ आदि शरीरके मैलको जीवरहित
‘‘मूलाचार’’ आदि शास्त्रोंमें देखें
किंचित् खेद नहीं करते; अनासक्त और निर्मोह– हठरहित सहज
होते हैं