Chha Dhala (Hindi). Gatha: 4: muniyoki teen gupti aur panch indriyo par vijay (Dhal 6).

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स्थान देखकर त्यागते हैं; इसलिये उनको (५) व्युत्सर्ग अर्थात्
प्रतिष्ठापन समिति होती है
।।।।
मुनियोंकी तीन गुप्ति और पाँच इन्द्रियों पर विजय
सम्यक् प्रकार निरोध मन वच काय, आतम ध्यावते
तिन सुथिर मुद्रा देखि मृगगण उपल खाज खुजावते ।।
रस रूप गंध तथा फरस अरु शब्द शुभ असुहावने
तिनमें न राग-विरोध पंचेन्द्रिय-जयन पद पावने ।।।।
अन्वयार्थ :[वीतरागी मुनि ] (मन वच काय) मन-
वचन-कायाका (सम्यक् प्रकार) भली-भाँति-बराबर (निरोध) निरोध
करके, जब (आतम) अपने आत्माका (ध्यावते) ध्यान करते हैं,
तब (तिन) उन मुनियोंकी (सुथिर) सुथिर-शांत (मुद्रा) मुद्रा
(देखि) देखकर, उन्हें (उपल) पत्थर समझकर (मृगगण) हिरन
अथवा चौपाये प्राणियोंके समूह (खाज) अपनी खाज-खुजलीको
(खुजावते) खुजाते हैं । [जो ] (शुभ) प्रिय और (असुहावने) अप्रिय
[पाँच इन्द्रियों सम्बन्धी ] (रस) पाँच रस, (रूप) पाँच वर्ण, (गंध)
दो गंध, (फ रस) आठ प्रकारके स्पर्श, (अरु) और (शब्द)
१६० ][ छहढाला