नहीं होते, [इसलिये वे मुनि ] (पंचेन्द्रिय जयन) पाँच इन्द्रियोंको
जीतनेवाला अर्थात् जितेन्द्रिय (पद) पद (पावने) प्राप्त करते हैं ।
वर्णन करते हैं ।
गुप्ति है । उस समय मन-वचन-कायकी क्रिया स्वयं रुक जाती है ।
उनकी शांत और अचल मुद्रा देखकर, उनके शरीरको पत्थर
समझकर मृगोंके
तीन गुप्तियाँ हैं ।
उत्तर–मन-वचन-कायाकी बाह्य चेष्टा मिटाना चाहे, पापका
जीव गुप्ति मानते हैं । उस समय मनमें तो भक्ति आदि रूप अनेक
प्रकारके शुभरागादि विकल्प उठते हैं; इसलिये प्रवृत्तिमें तो गुप्तिपना
उस समय एक सियालनी और उसके दो बच्चे उनका आधा पैर
खा गये थे; किन्तु वे अपने ध्यानसे किंचित् चलायमान नहीं हुए
ममत्वभावसे ही दुःखका अनुभव होता है–ऐसा समझना