Chha Dhala (Hindi).

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शब्द–(तिनमें) उन सबमें (राग-विरोध) राग या द्वेष (न) मुनिको
नहीं होते, [इसलिये वे मुनि ] (पंचेन्द्रिय जयन) पाँच इन्द्रियोंको
जीतनेवाला अर्थात् जितेन्द्रिय (पद) पद (पावने) प्राप्त करते हैं ।
भावार्थ :इस गाथामें निश्चय गुप्तिका तथा भावलिंगी
मुनिके अट्ठाईस मूलगुणोंमें पाँच इन्द्रियोंकी विजयके स्वरूपका
वर्णन करते हैं ।
भावलिंगी मुनि जब उग्र पुरुषार्थ द्वारा शुद्धोपयोगरूप
परिणमित होकर निर्विकल्प रूपमें स्वरूपमें गुप्त होते हैं–वह निश्चय
गुप्ति है । उस समय मन-वचन-कायकी क्रिया स्वयं रुक जाती है ।
उनकी शांत और अचल मुद्रा देखकर, उनके शरीरको पत्थर
समझकर मृगोंके
झुण्ड (पशु) खाज (खुजली) खुजाते हैं, तथापि
वे मुनि अपने ध्यानमें निश्चल रहते हैं । उन भावलिंगी मुनियोंको
तीन गुप्तियाँ हैं ।
प्रश्न–गुप्ति किसे कहते हैं?
उत्तर–मन-वचन-कायाकी बाह्य चेष्टा मिटाना चाहे, पापका
चिंतवन न करे मौन धारण करे, तथा गमनादि न करे, उसे अज्ञानी
जीव गुप्ति मानते हैं । उस समय मनमें तो भक्ति आदि रूप अनेक
प्रकारके शुभरागादि विकल्प उठते हैं; इसलिये प्रवृत्तिमें तो गुप्तिपना
इस सम्बन्धमें सुकुमाल मुनिका दृष्टान्त–जब वे ध्यान में लीन थे,
उस समय एक सियालनी और उसके दो बच्चे उनका आधा पैर
खा गये थे; किन्तु वे अपने ध्यानसे किंचित् चलायमान नहीं हुए
(संयोगसे दुःख होता ही नहीं, शरीरादिमें ममत्व करे तो उस
ममत्वभावसे ही दुःखका अनुभव होता है–ऐसा समझना
)
छठवीं ढाल ][ १६१