बोलते हैं । (जिनदेवको) जिनेन्द्र भगवानकी (वन्दना) वन्दना करते
हैं । (श्रुतिरति) स्वाध्यायमें प्रेम (करैं) करते हैं, (प्रतिक्रम)
प्रतिक्रमण (करैं) करते हैं, (तन) शरीरकी (अहमेवको) ममताको
(तजैं) छोड़ते हैं । (जिनके) जिन मुनियोंको (न्हौन) स्नान और
(दंतधोवन) दाँतोंको स्वच्छ करना (न) नहीं होता, (अंबर
आवरन) शरीर ढँकनेके लिये वस्त्र (लेश) किंचित् भी उनके (न)
नहीं होता और (पिछली रयनिमें) रात्रिके पिछले भागमें (भूमाहिं)
धरती पर (एकासन) एक करवट (कछु) कुछ समय तक (शयन)
शयन (करन) करते हैं ।
स्वाध्याय, (५) प्रतिक्रमण, (६) कायोत्सर्ग (शरीरके प्रति ममताका
त्याग) करते हैं; इसलिये उनको छह आवश्यक होते हैं और वे
मुनि कभी भी (१) स्नान नहीं करते, (२) दाँतोंकी सफाई नहीं
करते, (३) शरीरको ढँकनेके लिये थोड़ा-सा भी वस्त्र नहीं रखते
तथा (४) रात्रिके पिछले भागमें एक करवटसे भूमि पर कुछ समय
शयन करते हैं