वीतरागभावरूप उत्तमक्षमादि परिणाम सो धर्म है । भावलिंगी
मुनिको उपर्युक्तानुसार तप और धर्मका आचरण होता है; वे
मुनियोंके संघमें अथवा अकेले विहार करते हैं; किसी भी समय
सांसारिक सुखकी इच्छा नहीं करते । –इस प्रकार सकलचारित्रका
स्वरूप कहा ।
निर्जराका कारण है, इसलिये उपचारसे तपको भी निर्जराका
कारण कहा है । यदि बाह्य दुःख सहन करना ही निर्जराका कारण
हो, तब तो पशु आदि भी क्षुधा-तृषा सहन करते हैं ।
होती है ना ?
होगा; उपवासके प्रमाणमें यदि निर्जरा हो तो निर्जराका मुख्य
कारण उपवासादि सिद्ध हों; किन्तु ऐसा तो हो नहीं सकता;
क्योंकि परिणाम दुष्ट होने पर उपवासादि करनेसे भी, निर्जरा कैसे
सम्भव हो सकती है? यहाँ यदि ऐसा कहोगे कि–जैसे अशुभ, शुभ
या शुद्धरूप उपयोग परिणमित हो, तदनुसार बन्ध-निर्जरा हैं, तो
उपवासादि तप निर्जराका मुख्य कारण कहाँ रहा ?–वहाँ अशुभ
और शुभ परिणाम तो बन्धके कारण सिद्ध हुए तथा शुद्ध परिणाम
निर्जराका कारण सिद्ध हुआ ।