(छैनी) छैनी
वर्ण, रस, गंध, तथा स्पर्शरूप द्रव्यकर्मसे (अरु) और (रागादितैं)
राग-द्वेषादिरूप भावकर्मसे (न्यारा किया) भिन्न करके (निजमांहिं)
अपने आत्मामें (निजके हेतु) अपने लिये (निजकर) अपने द्वारा
(आपको) आत्माको (आपै) स्वयं अपनेसे (गह्यो) ग्रहण करते हैं,
तब (गुण) गुण, (गुणी) गुणी, (ज्ञाता) ज्ञाता, (ज्ञेय) ज्ञानका
विषय और (ज्ञान मँझार) ज्ञानमें–आत्मामें (कछु भेद न रह्यो)
किंचित्मात्र भेद [विकल्प ] नहीं रहता ।
पत्थर आदिके दो भाग पृथक्-पृथक् कर देता है;
उसीप्रकार शुद्धोपयोग कर्मोंको काटता है और आत्मासे उन
कर्मोंको पृथक् कर देता है