Chha Dhala (Hindi).

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इमि जानि, आलस हानि, साहस ठानि, यह सिख आदरौ
जबलौं न रोग जरा गहै, तबलौं झटिति निज हित करौ ।।१४।।
अन्वयार्थ :(बढ़भागि) जो महा पुरुषार्थी जीव (यों)
इसप्रकार (मुख्योपचार) निश्चय और व्यवहार (दुभेद) ऐसे दो
प्रकारके (रत्नत्रय) रत्नत्रयको (धरैं अरु धरेंगे) धारण करते हैं
और करेंगे (ते) वे (शिव) मोक्ष (लहैं) प्राप्त करते हैं और (तिन)
उन जीवोंका (सुयश-जल) सुकीर्तिरूपी जल (जग-मल)
संसाररूपी मैलको (हरैं) नाश करता है ।
(इमि) ऐसा (जानि)
जानकर (आलस) प्रमाद [स्वरूपमें असावधानी ] (हानि) छोड़कर
(साहस) पुरुषार्थ (ठानि) करके (यह) यह (सिख) शिक्षा-उपदेश
(आदरौ) ग्रहण करो कि (जबलौं) जब तक (रोग जरा) रोग या
वृद्धावस्था (न गहै) न आये (तबलौं) तब तक (झटिति) शीघ्र
(निज हित) आत्माका हित (करौ) कर लेना चाहिये ।
भावार्थ :जो सत्पुरुषार्थी जीव सर्वज्ञ-वीतरागी कथित
निश्चय और व्यवहाररत्नत्रयका स्वरूप जानकर, उपादेय तथा हेय
तत्त्वोंका स्वरूप समझकर अपने शुद्ध उपादान-आश्रित
निश्चयरत्नत्रयको ( शुद्धात्माश्रित वीतरागभावस्वरूप मोक्षमार्गको)
धारण करते हैं तथा करेंगे वे जीव पूर्ण पवित्रतारूप मोक्षमार्गको
प्राप्त होते हैं और होंगे । [गुणस्थानके प्रमाणमें शुभराग आता है,
वह व्यवहार-रत्नत्रयका स्वरूप जानना तथा उसे निश्चयसे उपादेय
न मानना, उसका नाम व्यवहार-रत्नत्रयका धारण करना है । ] जो
जीव मोक्षको प्राप्त हुए हैं और होंगे उनका सुकीर्ति रूपी जल कैसा
है?–कि जो सिद्ध परमात्माका यथार्थ स्वरूप समझकर स्वोन्मुख
होनेवाले भव्य जीव हैं, उनके संसार (
मलिनभाव) रूपी मलको
१८० ][ छहढाला