Chha Dhala (Hindi). Gatha: 15: antim shikh (Dhal 6).

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हरनेका निमित्त है । ऐसा जानकर प्रमादको छोड़कर साहस अर्थात्
सच्चा पुरुषार्थ करके यह उपदेश अंगीकार करो । जब तक रोग
या वृद्धावस्थाने शरीरको नहीं घेरा है, तब तक शीघ्र वर्तमानमें
ही आत्माका हित कर लो
।।१४।।
अन्तिम सीख
यह राग-आग दहै सदा, तातैं समामृत सेइये
चिर भजे विषय-कषाय अब तो, त्याग निजपद बेइये ।।
कहा रच्यो पर पदमें, न तेरो पद यहै, क्यों दुख सहै
अब ‘‘दौल’’ ! होउ सुखी स्वपद-रचि, दाव मत चूकौ यहै ।।१५।।
अन्वयार्थ :(यह) यह (राग-आग) रागरूपी अग्नि
(सदा) अनादिकालसे निरन्तर जीवको (दहै) जला रही है, (तातैं)
इसलिये (समामृत) समतारूप अमृतका (सेइये) सेवन करना
चाहिये । (विषय-कषाय) विषय-कषायका (चिर भजे) अनादिकालसे
सेवन किया है, (अब तो) अब तो (त्याग) उसका त्याग करके
(निजपद) आत्मस्वरूपको (बेइये) जानना चाहिये–प्राप्त करना
चाहिये । (पर पदमें) परपदार्थोंमें–परभावोंमें (कहा) क्यों (रच्यो)
छठवीं ढाल ][ १८१