सच्चा पुरुषार्थ करके यह उपदेश अंगीकार करो । जब तक रोग
या वृद्धावस्थाने शरीरको नहीं घेरा है, तब तक शीघ्र वर्तमानमें
ही आत्माका हित कर लो
इसलिये (समामृत) समतारूप अमृतका (सेइये) सेवन करना
चाहिये । (विषय-कषाय) विषय-कषायका (चिर भजे) अनादिकालसे
सेवन किया है, (अब तो) अब तो (त्याग) उसका त्याग करके
(निजपद) आत्मस्वरूपको (बेइये) जानना चाहिये–प्राप्त करना
चाहिये । (पर पदमें) परपदार्थोंमें–परभावोंमें (कहा) क्यों (रच्यो)