३ (अक्षय तृतीया)के दिन इस छहढाला ग्रन्थकी रचना की है ।
मेरी अल्पबुद्धि तथा प्रमादवश उसमें कहीं शब्दकी या अर्थकी भूल
रह गई हो तो बुद्धिमान उसे सुधारकर पढ़ें, ताकि जीव संसार-
समुद्रको पार करनेमें शक्तिमान हो ।
है, अपने आत्मामें, आत्माके लिये, आत्मा द्वारा, अपने आत्माका
ही अनुभव होने लगता है, वहाँ नय, प्रमाण, निक्षेप, गुण-गुणी,
ज्ञान-ज्ञाता-ज्ञेय, ध्यान-ध्याता-ध्येय, कर्ता-कर्म और क्रिया आदि
जिस प्रकार तीक्ष्ण शस्त्रोंके प्रहारको रोकनेवाली ढाल होती है,
उसीप्रकार जीवको अहितकारी शत्रु–मिथ्यात्व, रागादि, आस्रवों-
का तथा अज्ञानांधकारको रोकनेके लिये ढालके समान यह छह
प्रकरण है; इसलिये इस ग्रन्थका नाम छहढाला रखा गया है