Chha Dhala (Hindi). Gatha: 16: granth rachanAkA kAl aur usame AdhAr (Dhal 6) Chhathavee dhalka saransh.

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ग्रन्थ-रचनाका काल और उसमें आधार
इक नव वसु इक वर्षकी, तीज शुक्ल वैशाख
करयो तत्त्व-उपदेश यह, लखि बुधजनकी भाख ।।
लघु-धी तथा प्रमादतैं, शब्द अर्थकी भूल
सुधी सुधार पढ़ो सदा, जो पावो भव-कूल ।।१६।।
भावार्थ :पण्डित बुधजनकृत छहढालाके कथनका
आधार लेकर मैंने (दौलतरामने) विक्रम संवत् १८९१ वैशाख शुक्ल
३ (अक्षय तृतीया)के दिन इस छहढाला ग्रन्थकी रचना की है ।
मेरी अल्पबुद्धि तथा प्रमादवश उसमें कहीं शब्दकी या अर्थकी भूल
रह गई हो तो बुद्धिमान उसे सुधारकर पढ़ें, ताकि जीव संसार-
समुद्रको पार करनेमें शक्तिमान हो ।
छठवीं ढालका सारांश
जिस चारित्रके होनेसे समस्त परपदार्थोंसे वृत्ति हट जाती
है, वर्णादि तथा रागादिसे चैतन्यभावको पृथक् कर लिया जाता
है, अपने आत्मामें, आत्माके लिये, आत्मा द्वारा, अपने आत्माका
ही अनुभव होने लगता है, वहाँ नय, प्रमाण, निक्षेप, गुण-गुणी,
ज्ञान-ज्ञाता-ज्ञेय, ध्यान-ध्याता-ध्येय, कर्ता-कर्म और क्रिया आदि
इस ग्रन्थमें छह प्रकारके छन्द और छह प्रकरण हैं, इसलिये तथा
जिस प्रकार तीक्ष्ण शस्त्रोंके प्रहारको रोकनेवाली ढाल होती है,
उसीप्रकार जीवको अहितकारी शत्रु–मिथ्यात्व, रागादि, आस्रवों-
का तथा अज्ञानांधकारको रोकनेके लिये ढालके समान यह छह
प्रकरण है; इसलिये इस ग्रन्थका नाम छहढाला रखा गया है
छठवीं ढाल ][ १८३