Chha Dhala (Hindi). Chhathavee dhalka bhed-sangrah.

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छठवीं ढालका भेद-संग्रह
अंतरंग तपके नाम :–प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय,
व्युत्सर्ग और ध्यान ।
उपयोग–शुद्ध उपयोग, शुभ उपयोग और अशुभ उपयोग–ऐसे तीन
उपयोग हैं । यह चारित्रगुणकी अवस्थाएँ हैं । (जानना-
देखना वह ज्ञान-दर्शनगुणका उपयोग है– यह बात यहाँ
नहीं है ।)
छियालीस दोष–दाताके आश्रित १६ उद्गम दोष, पात्रके आश्रित
१६ उत्पादन दोष तथा आहार सम्बन्धी १० और भोजन
क्रिया सम्बन्धी ४–ऐसे कुल ४६ दोष हैं ।
तीन रत्न–सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ।
तेरह प्रकारका चारित्र–पाँच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति ।
धर्म–उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग,
आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य–ऐसे दस प्रकार हैं । [दसों धर्मोंको
उत्तम संज्ञा है; इसलिये निश्चयसम्यक्दर्शनपूर्वक
वीतरागभावनाके ही वे दस प्रकार हैं । ]
मुनिकी क्रिया– (मुनिके गुण) –मूलगुण २८ हैं ।
रत्नत्रय–निश्चय और व्यवहार अथवा मुख्य और उपचार–ऐसे दो
प्रकार हैं ।
सिद्ध परमात्माके गुण–सर्व गुणोंमें सम्पूर्ण शुद्धता प्रगट होने पर
सर्व प्रकारसे अशुद्ध पर्यायोंका नाश होनेसे, ज्ञानावरणादि
आठों कर्मोंका स्वयं सर्वथा नाश हो जाता है और गुण
छठवीं ढाल ][ १८५