Chha Dhala (Hindi).

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प्रगट नहीं होते; किन्तु गुणोंकी निर्मल पर्यायें प्रगट होती
हैं; जैसे कि–अनन्तदर्शन-ज्ञान-सम्यक्त्व-सुख, अनन्तवीर्य,
अटल अवगाहना, अमूर्तिक (सूक्ष्मत्व) और अगुरुलघुत्व ।
–यह आठ मुख्य गुण व्यवहारसे कहे हैं, निश्चयसे तो
प्रत्येक सिद्धके अनन्त गुण समझना चाहिये ।
शील–अचेतन स्त्री–तीन [कठोर स्पर्श, कोमल स्पर्श, चित्रपट ]
प्रकारकी, उसके साथ तीन करण [करना, कराना और
अनुमोदना करना ] से दो [मन, वचन ] योग द्वारा पाँच
इन्द्रियाँ [कर्ण, चक्षु, घ्राण, रसना और स्पर्श ] से चार
संज्ञा [आहार, भय, मैथुन, परिग्रह ] सहित द्रव्यसे सेवन
और भावसे सेवन ३×३×२×५×४×२=७२०–ऐसे भेद
हुए ।
चेतन स्त्री–[देवी, मनुष्य, तिर्यंच ] तीन प्रकारकी, उनके साथ तीन
करण [करना, कराना और अनुमोदना करना ] से तीन
[मन, वचन, कायारूप ] योग द्वारा, पाँच [कर्ण, चक्षु, घ्राण,
रसना, स्पर्शरूप ] इन्द्रियोंसे, चार [आहार, भय, मैथुन,
परिग्रह ] संज्ञा सहित द्रव्यसे और भावसे, सोलह
[अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरणीय, प्रत्याख्यानावरणीय ]
और संज्वलन–इन चार प्रकारसे क्रोध, मान, माया,
लोभ–ऐसे प्रत्येक ] प्रकारसे सेवन ३×३×३×५×४
×२×१६=१७२८० भेद हुए ।
प्रथम ७२० और दूसरे १७२८० भेद मिलकर=१८०००
भेद मैथुन-कर्मके दोषरूप भेद हैं; उनका अभाव सो शील
है; उसे निर्मल स्वभाव अथवा शील कहते हैं ।
१८६ ][ छहढाला