Chha Dhala (Hindi).

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नय–वस्तुके एक अंशको मुख्य करके जाने वह नय है और वह
उपयोगात्मक है । सम्यक् श्रुतज्ञानप्रमाणका अंश वह नय है ।
निक्षेप–न्ायज्ञान द्वारा बाधारहितरूपसे प्रसंगवशात् पदार्थमें
नामादिकी स्थापना करना सो निक्षेप है ।
परिग्रह–परवस्तुमें ममताभाव (मोह अथवा ममत्व) ।
परिषहजय–दुःखके कारण मिलनेसे दुःखी न हो तथा सुखके
कारण मिलनेसे सुखी न हो; किन्तु ज्ञातारूपसे उस ज्ञेयका
जाननेवाला ही रहे–वही सच्चा परिषहजय है ।
प्रतिक्रमण–मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान एवं मिथ्याचारित्रको निरवशेष-
रूपसे छोड़कर सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्रको
(जीव) भाता है, वह (जीव) प्रतिक्रमण है ।
(नियमसार गाथा-९१)
प्रमाण–स्व-पर वस्तुका निश्चय करनेवाला सम्यग्ज्ञान ।
बहिरंग तप–दूसरे देख सकें ऐसे पर-पदार्थोंसे सम्बन्धित
इच्छानिरोध ।
मनोगुप्ति–मनकी ओर उपयोग न जाकर आत्मामें ही लीनता ।
महाव्रत–निश्चयरत्नत्रयपूर्वक तीनों योग (मन, वचन, काय) तथा
करने-कराने-अनुमोदनके भेद सहित हिंसादि पाँच पापोंका
सर्वथा त्याग ।
जैन साधु (मुनि)को हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्म और
परिग्रह–इन पाँचों पापोंका सर्वथा त्याग होता है ।
रत्नत्रय–निश्चयसम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र ।
१८८ ][ छहढाला