Chha Dhala (Hindi). Gatha: 8: tiryanchgatime dukhakI adhikatA aur narakgatikI praptikA kAran (Dhal 1).

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पशु हुआ तो स्वयं असमर्थ होनेके कारण अपनेसे बलवान
प्राणियों द्वारा खाया गया; तथा उस तिर्यंचगतिमें छेदा जाना,
भेदा जाना, भूख, प्यास, बोझ ढोना, ठण्ड, गर्मी आदिके दुःख
भी सहन किये
।।।।
तिर्यंचके दुःखकी अधिकता और नरक गतिकी प्राप्तिका कारण
बध बंधन आदिक दुख घने, कोटि जीभतैं जात न भने
अति संक्लेश भावतैं मरयो, घोर श्वभ्रसागरमें परयो ।।।।
अन्वयार्थ :[इस तिर्यंचगतिमें जीवने अन्य भी ] (बध)
मारा जाना, (बंधन) बँधना (आदिक) आदि (घने) अनेक (दुख)
दुःख सहन किये; [वे ] (कोटि) करोड़ों (जीभतैं) जीभोंसे (भने न
जात) नहीं कहे जा सकते । [इस कारण ] (अति संक्लेश) अत्यन्त
बुरे (भावतैं) परिणामोंसे (मरयो) मरकर (घोर) भयानक
(श्वभ्रसागर) नरकरूपी समुद्र (परयो) जा गिरा ।
भावार्थ :इस जीवने तिर्यंचगतिमें मारा जाना, बँधना
आदि अनेक दुःख सहन किये; जो करोड़ों जीभोंसे भी नहीं कहे
१० ][ छहढाला