जा सकते और अंतमें इतने बुरे परिणामों (आर्तध्यान)से मरा कि
जिसे बड़ी कठिनतासे पार किया जा सके, ऐसे समुद्रसमान घोर
नरकमें जा पहुँचा ।।९।।
नरकोंकी भूमि और नदियोंका वर्णन
तहाँ भूमि परसत दुख इसो, बिच्छू सहस डसे नहिं तिसो ।
तहाँ राध-श्रोणितवाहिनी, कृमिकुलकलित, देहदाहिनी ।।९।।
अन्वयार्थ : – (तहाँ) उस नरकमें (भूमि) धरती
(परसत) स्पर्श करनेसे (इसो) ऐसा (दुख) दुःख होता है [कि ]
(सहस) हजारों (बिच्छू) बिच्छू (डसे) डंक मारें; तथापि (नहिं
तिसो) उसके समान दुःख नहीं होता [तथा ] (तहाँ) वहाँ
[नरकमें ] (राध-श्रोणितवाहिनी) रक्त और मवाद बहानेवाली नदी
[वैतरणी नामकी नदी ] है जो (कृमि-कुल-कलित) छोटे-छोटे क्षुद्र
कीड़ोंसे भरी है तथा (देह-दाहिनी) शरीरमें दाह उत्पन्न करनेवाली
है ।
भावार्थ : – उन नरकोंकी भूमिका स्पर्शमात्र करनेसे
नारकियोंको इतनी वेदना होती है कि हजारों बिच्छू एकसाथ डंक
मारें, तब भी उतनी वेदना न हो तथा उस नरकमें रक्त, मवाद
पहली ढाल ][ ११