एक वैतरणी नदी है, जिसमें शांतिलाभकी इच्छासे नारकी जीव
कूदते हैं; किन्तु वहाँ तो पीड़ा अधिक भयंकर हो जाती है ।
कारण है । )
सेमलके वृक्ष [हैं, जो ] (देह) शरीरको (असि ज्यों) तलवारकी
भाँति (विदारैं) चीर देते हैं, [और ] (तत्र) वहाँ [उस नरकमें ]
(ऐसी) ऐसी (शीत) ठण्ड [और ] (उष्णता) गरमी (थाय) होती
है [कि ] (मेरु समान) मेरु पर्वतके बराबर (लोह) लोहेका गोला
भी (गलि) गल (जाय) सकता है ।
तलवारकी धारके समान तीक्ष्ण होते
हैं । जब दुःखी नारकी छाया
मिलनेकी आशा लेकर उस वृक्षके
नीचे जाता है, तब उस वृक्षके पत्ते
गिरकर उसके शरीरको चीर देते
हैं । उन नरकोंमें इतनी गरमी होती