Chha Dhala (Hindi). Gatha: 10: narakake semal vrukSh tathA shardee-garmeeke dukh (Dhal 1).

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और छोटे-छोटे कीड़ोंसे भरी हुई, शरीरमें दाह उत्पन्न करनेवाली
एक वैतरणी नदी है, जिसमें शांतिलाभकी इच्छासे नारकी जीव
कूदते हैं; किन्तु वहाँ तो पीड़ा अधिक भयंकर हो जाती है ।
(जीवोंको दुःख होनेका मूलकारण तो उनकी शरीरके साथ
ममता तथा एकत्वबुद्धि ही है; धरतीका स्पर्श आदि तो मात्र निमित्त
कारण है । )
।।१०।।
नरकोंके सेमल वृक्ष तथा सर्दी-गर्मीके दुःख
सेमर तरु दलजुत असिपत्र, असि ज्यों देह विदारैं तत्र
मेरु समान लोह गलि जाय, ऐसी शीत उष्णता थाय ।।१०।।
अन्वयार्थ :(तत्र) उन नरकोंमें (असिपत्र ज्यों)
तलवारकी धारकी भाँति तीक्ष्ण (दलजुत) पत्तोंवाले (सेमर तरु)
सेमलके वृक्ष [हैं, जो ] (देह) शरीरको (असि ज्यों) तलवारकी
भाँति (विदारैं) चीर देते हैं, [और ] (तत्र) वहाँ [उस नरकमें ]
(ऐसी) ऐसी (शीत) ठण्ड [और ] (उष्णता) गरमी (थाय) होती
है [कि ] (मेरु समान) मेरु पर्वतके बराबर (लोह) लोहेका गोला
भी (गलि) गल (जाय) सकता है ।
भावार्थ :उन नरकोंमें
अनेक सेमलके वृक्ष हैं, जिनके पत्ते
तलवारकी धारके समान तीक्ष्ण होते
हैं । जब दुःखी नारकी छाया
मिलनेकी आशा लेकर उस वृक्षके
नीचे जाता है, तब उस वृक्षके पत्ते
गिरकर उसके शरीरको चीर देते
हैं । उन नरकोंमें इतनी गरमी होती
१२ ][ छहढाला