(विपरीत) विपरीत (मान करि) मानकर (देहमें) शरीरमें (निज)
आत्माकी (पिछान) पहिचान (करे) करता है ।
द्रव्योंसे पृथक् है, किन्तु मिथ्यादृष्टि जीव आत्माके स्वभावकी यथार्थ
श्रद्धा न करके अज्ञानवश विपरीत मानकर, शरीर ही मैं हूँ, शरीरके
कार्य मैं कर सकता हूँ, मैं अपनी इच्छानुसार शरीरकी व्यवस्था
रख सकता हूँ– ऐसा मानकर शरीरको ही आत्मा मानता है ।
[यह जीवतत्त्वकी विपरीत श्रद्धा है । ]
निर्धन, (राव) राजा हूँ, (मेरे) मेरे यहाँ (धन) रुपया-पैसा आदि
(गृह) घर (गोधन) गाय, भैंस आदि (प्रभाव) बड़प्पन [है; और ]