बलवान, (दीन) निर्बल, (बेरूप) कुरूप, (सुभग) सुन्दर, (मूरख)
मूर्ख और (प्रवीण) चतुर हूँ ।
शरीर है सो मैं ही हूँ, शरीरके कार्य मैं कर सकता हूँ, शरीर
स्वस्थ हो तो मुझे लाभ हो, बाह्य अनुकूल संयोगोंसे मैं सुखी और
प्रतिकूल संयोगोंसे मैं दुःखी, मैं निर्धन, मैं धनवान, मैं बलवान, मैं
निर्बल, मैं मनुष्य, मैं कुरूप, मैं सुन्दर–ऐसा मानता है; शरीराश्रित
उपदेश तथा उपवासादि क्रियाओंमें अपनत्व मानता है– इत्यादि
परिणाम मानता है, वह जीवतत्त्वकी भूल है
रहने या बिगड़नेसे आत्माका कुछ भी अच्छा-बुरा नहीं होता;
किन्तु मिथ्यादृष्टि जीव इससे विपरीत मानता है ।