Chha Dhala (Hindi).

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अन्वयार्थ :[मिथ्यादृष्टि जीव ] (तन) शरीरके
(उपजत) उत्पन्न होनेसे (अपनी) अपना आत्मा (उपज) उत्पन्न
हुआ (जान) ऐसा मानता है और (तन) शरीरके (नशत) नाश
होनेसे (आपको) आत्माका (नाश) मरण हुआ ऐसा (मान) मानता
है । (रागादि) राग, द्वेष, मोहादि (ये) जो (प्रगट) स्पष्ट रूपसे
(दुख देन) दुःख देनेवाले हैं, (तिनहीको) उनकी (सेवत) सेवा
करता हुआ (चैन) सुख (गिनत) मानता है ।
भावार्थ :(१) अजीवतत्त्वकी भूल–मिथ्यादृष्टि जीव ऐसा
मानता है कि शरीरकी उत्पत्ति (संयोग) होनेसे मैं उत्पन्न हुआ और
शरीरका नाश (वियोग) होनेसे मैं मर जाऊँगा, (आत्माका मरण
मानता है;) धन, शरीरादि जड़ पदार्थोंमें परिवर्तन होनेसे अपनेमें
इष्ट-अनिष्ट परिवर्तन मानना, शरीरमें क्षुधा-तृषारूप अवस्था होनेसे
मुझे क्षुधा-तृषादि होते हैं; शरीर कटनेसे मैं कट गया–इत्यादि जो
अजीवकी अवस्थाएँ हैं, उन्हें अपनी मानता है यह अजीवतत्त्वकी
भूल है
(२) आस्रवतत्त्वकी भूल–जीव अथवा अजीव कोई भी पर
पदार्थ आत्माको किंचित् भी सुख-दुःख, सुधार-बिगाड,़ इष्ट-अनिष्ट
नहीं कर सकते; तथापि अज्ञानी ऐसा नहीं मानता । परमें कर्तृत्व,
ममत्वरूप मिथ्यात्व तथा राग-द्वेषादि शुभाशुभ आस्रवभाव–यह
प्रत्यक्ष दुःख देनेवाले हैं, बंधके ही कारण हैं, तथापि अज्ञानी जीव
उन्हें सुखकर जानकर सेवन करता है । और शुभभाव भी बन्धका
ही कारण है– आस्रव है, उसे हितकर मानता है । परद्रव्य जीवको
आत्मा अमर है; वह विष, अग्नि, शस्त्र, अस्त्र अथवा अन्य किसी
से नहीं मरता और न नवीन उत्पन्न होता है
मरण अर्थात् वियोग
तो मात्र शरीरका ही होता है
दूसरी ढाल ][ ३५