Chha Dhala (Hindi). Gatha: 7: nirjara aur mokShake vipareet shraddha tatha agruhit mithyAgyan (Dhal 2).

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फलानुसार पदार्थोंकी संयोग-वियोगरूप अवस्थाएँ होती हैं ।
मिथ्यादृष्टि जीव उन्हें अनुकूल-प्रतिकूल मानकर उनसे मैं सुखी-
दुःखी हूँ, ऐसी कल्पना द्वारा राग-द्वेष, आकुलता करता है ।
धन, योग्य स्त्री, पुत्रादिका संयोग होनेसे रति करता है; रोग,
निंदा, निर्धनता, पुत्र-वियोगादि होनेसे अरति करता है; पुण्य-
पाप दोनों बन्धनकर्ता हैं; किन्तु ऐसा न मानकर पुण्यको
हितकारी मानता है; तत्त्वदृष्टिसे तो पुण्य-पाप दोनों अहितकर
ही हैं; परन्तु अज्ञानी ऐसा निर्धाररूप नहीं मानता–यह
बन्धतत्त्वकी विपरीत श्रद्धा है ।
(२) संवरतत्त्वकी भूल–निश्चयसम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र ही
जीवको हितकारी हैं; स्वरूपमें स्थिरता द्वारा रागका जितना
अभाव वह वैराग्य है, और वह सुखके कारणरूप है; तथापि
अज्ञानी जीव उसे कष्टदाता मानता है–यह संवरतत्त्वकी विपरीत
श्रद्धा है
।।।।
निर्जरा और मोक्षकी विपरीत श्रद्धा तथा अगृहीत मिथ्याज्ञान
रोके न चाह निजशक्ति खोय, शिवरूप निराकुलता न जोय
याही प्रतीतिजुत कछुक ज्ञान, सो दुखदायक अज्ञान जान ।।।।
दूसरी ढाल ][ ३७