Chha Dhala (Hindi). Gatha: 8: agruhit mithyA charitra (kuchAritra)kA lakShan (Dhal 2).

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इन्द्रियाँ तथा विषयोंके बिना सुख कैसे हो सकता है? वहाँसे पुनः
अवतार धारण करना पड़ता है –इत्यादि । इसप्रकार मोक्षदशामें
निराकुलता नहीं मानता यह मोक्षतत्त्वकी विपरीत श्रद्धा है ।
(३) अज्ञान :–अगृहीत मिथ्यादर्शनके रहते हुए जो कुछ
ज्ञान हो इसे अगृहीत मिथ्याज्ञान कहते हैं; यह महान दुःखदाता
है । उपदेशादि बाह्य निमित्तोंके आलम्बन द्वारा उसे नवीन ग्रहण
नहीं किया है; किन्तु अनादिकालीन है, इसलिये उसे अगृहीत
(स्वाभाविक-निसर्गज) मिथ्याज्ञान कहते हैं
।।।।
अगृहीत मिथ्याचारित्र (कुचारित्र)का लक्षण
इन जुत विषयनिमें जो प्रवृत्त, ताको जानो मिथ्याचरित्त
यों मिथ्यात्वादि निसर्ग जेह, अब जे गृहीत, सुनिये सु तेह ।।।।
अन्वयार्थ :(जो) जो (विषयनिमें) पाँच इन्द्रियोंके
विषयोंमें (इन जुत) अगृहीत मिथ्यादर्शन तथा अगृहीत मिथ्याज्ञान
सहित (प्रवृत्त) प्रवृत्ति करता है (ताको) उसे (मिथ्याचरित्त)
अगृहीत मिथ्याचारित्र (जानो) समझो । (यों) इस प्रकार (निसर्ग)
अगृहीत (मिथ्यात्वादि) मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और
मिथ्याचारित्रका [वर्णन किया गया ] (अब) अब (जे) जो (गृहीत)
गृहीत [मिथ्यादर्शन, ज्ञान, चारित्र ] है (तेह) उसे (सुनिये)
सुनो ।
भावार्थ :अगृहीत मिथ्यादर्शन तथा अगृहीत मिथ्याज्ञान
सहित पाँच इन्द्रियोंके विषयमें प्रवृत्ति करना इसे अगृहीत
मिथ्याचारित्र कहा जाता है । इन तीनोंको दुःखका कारण जानकर
तत्त्वज्ञान द्वारा इनका त्याग करना चाहिये
।।।।
दूसरी ढाल ][ ३९