अवतार धारण करना पड़ता है –इत्यादि । इसप्रकार मोक्षदशामें
निराकुलता नहीं मानता यह मोक्षतत्त्वकी विपरीत श्रद्धा है ।
है । उपदेशादि बाह्य निमित्तोंके आलम्बन द्वारा उसे नवीन ग्रहण
नहीं किया है; किन्तु अनादिकालीन है, इसलिये उसे अगृहीत
(स्वाभाविक-निसर्गज) मिथ्याज्ञान कहते हैं
सहित (प्रवृत्त) प्रवृत्ति करता है (ताको) उसे (मिथ्याचरित्त)
अगृहीत मिथ्याचारित्र (जानो) समझो । (यों) इस प्रकार (निसर्ग)
अगृहीत (मिथ्यात्वादि) मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और
मिथ्याचारित्रका [वर्णन किया गया ] (अब) अब (जे) जो (गृहीत)
गृहीत [मिथ्यादर्शन, ज्ञान, चारित्र ] है (तेह) उसे (सुनिये)
सुनो ।
मिथ्याचारित्र कहा जाता है । इन तीनोंको दुःखका कारण जानकर
तत्त्वज्ञान द्वारा इनका त्याग करना चाहिये