राग-द्वेषरूपी मैलसे मलिन हैं और (वनिता) स्त्री (गदादि जुत)
गदा आदि सहित (चिह्न चीन) चिह्नोंसे पहिचाने जाते हैं (ते)
वे (कुदेव) झूठे देव हैं, (तिनकी) उन कुदेवोंकी (जु) जो
(शठ) मूर्ख (सेव करत) सेवा करते हैं, (तिन) उनका
(भवभ्रमण) संसारमें भ्रमण करना (न छेव) नहीं मिटता ।
भावार्थ : – जो राग और द्वेषरूपी मैलसे मलिन (रागी-
द्वेषी) हैं और स्त्री, गदा, आभूषण आदि चिह्नोंसे जिनको
पहिचाना जा सकता है वे ‘कुदेव’✽
कहे जाते हैं । जो अज्ञानी
ऐसे कुदेवोंकी सेवा (पूजा, भक्ति और विनय) करते हैं, वे इस
संसारका अन्त नहीं कर सकते अर्थात् अनन्तकाल तक उनका
भवभ्रमण नहीं मिटता ।।१०।।
गाथा ११ (उत्तरार्द्ध) (उत्तरार्द्ध)
कुधर्म और गृहीत मिथ्यादर्शनका संक्षिप्त लक्षण
रागादि भावहिंसा समेत, दर्वित त्रस थावर मरण खेत ।।११।।
जे क्रिया तिन्हैं जानहु कुधर्म, तिन सरधै जीव लहै अशर्म ।
याकूं गृहीत मिथ्यात्व जान, अब सुन गृहीत जो है अज्ञान ।।१२।।
अन्वयार्थ : – (रागादि भावहिंसा) राग-द्वेष आदि
✽सुदेव–अरिहंत परमेष्ठी; देव–भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिषी और
वैमानिक, कुदेव–हरि, हर शीतलादि; अदेव–पीपल, तुलसी,
लकड़बाबा आदि कल्पितदेव, जो कोई भी सरागी देव-देवी हैं वे
वन्दन-पूजन के योग्य नहीं हैं ।
४२ ][ छहढाला