(मरण खेत) मरणका स्थान (दर्वित) द्रव्यहिंसा (समेत) सहित
(जे) जो (क्रिया) क्रियाएँ [ हैं ] (तिन्हैं) उन्हें (कुधर्म) मिथ्याधर्म
(जानहु) जानना चाहिये । (तिन) उनकी (सरधै) श्रद्धा करनेसे
(जीव) आत्मा-प्राणी (लहै अशर्म) दुःख पाते हैं । (याकूं) इस
कुगुरु, कुदेव और कुधर्मका श्रद्धान करनेको (गृहीत मिथ्यात्व)
गृहीत मिथ्यादर्शन जानना, (अब गृहीत) अब गृहीत (अज्ञान)
मिथ्याज्ञान (जो है) जिसे कहा जाता है उसका वर्णन (सुन)
सुनो ।
धर्म माना जाता है, उसे कुधर्म कहते हैं । जो जीव उस
कुधर्मकी श्रद्धा करता है वह दुःख प्राप्त करता है । ऐसे मिथ्या
गुरु, देव और धर्मकी श्रद्धा करना उसे ‘‘गृहीत मिथ्यादर्शन’’
कहते हैं । वह परोपदेश आदि बाह्य कारणके आश्रयसे ग्रहण
किया जाता है; इसलिये ‘‘गृहीत’’ कहलाता है । अब गृहीत
मिथ्याज्ञानका वर्णन किया जाता है