Chha Dhala (Hindi). Gatha: 13: gruhit mithyAgyAnaka lakShan (Dhal 2).

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गृहीत मिथ्याज्ञानका लक्षण
एकान्तवाद-दूषित समस्त, विषयादिक पोषक अप्रशस्त
कपिलादि-रचित श्रुतको अभ्यास, सो है कुबोध बहु देन त्रास ।।१३।।
अन्वयार्थ :(एकान्तवाद) एकान्तरूप कथनसे
(दूषित) मिथ्या [और ] (विषयादिक) पाँच इन्द्रियोंके विषय
आदिकी (पोषक) पुष्टि करनेवाले (कपिलादि रचित) कल्पनाओं
द्वारा स्वेच्छाचारी आदिके रचे हुए (अप्रशस्त) मिथ्या (समस्त)
समस्त (श्रुतको) शास्त्रोंका (अभ्यास) पढ़ना-पढ़ाना, सुनना और
सुनाना (सो) वह (कुबोध) मिथ्याज्ञान [है; वह ] (बहु) बहुत
(त्रास) दुःखको (देन) देनेवाला है ।
भावार्थ :(१) वस्तु अनेक धर्मात्मक है; उसमेंसे किसी
भी एक ही धर्मको पूर्ण वस्तु कहनेके कारणसे दूषित (मिथ्या) तथा
विषय-कषायादिकी पुष्टि करनेवाले कुगुरुओंके रचे हुए सर्व
प्रकारके मिथ्या शास्त्रोंको धर्म बुद्धिसे लिखना-लिखाना, पढ़ना-
पढ़ाना, सुनना और सुनाना उसे गृहीत मिथ्याज्ञान कहते हैं ।
(२) जो शास्त्र जगतमें सर्वथा नित्य, एक, अद्वैत और
सर्वव्यापक ब्रह्ममात्र वस्तु है, अन्य कोई पदार्थ नहीं है–ऐसा वर्णन
४४ ][ छहढाला