प्रकाशकीय निवेदन
(पंद्रहवीं आवृत्ति)
इस लघु ग्रन्थकी अत्यन्त लोकप्रियता एवं मांगके कारण
इसकी यह पंद्रहवीं सचित्र आवृत्ति प्रकाशित कि जा रही है। आशा
है की मुमुक्षु समाज यह ग्रन्थका अभ्यास करके लाभान्वित होगा ।
यह पुस्तकका प्रिन्टींग कार्य कहान मुद्रणालय द्वारा अत्यंत
सुंदर ढंगसे किया गया है । जिसके लिए हम इनके आभारी हैं ।
जिनेन्द्र भगवान द्वारा प्ररूपित तत्त्वको स्पृष्टतया समझना
यह मुमुक्षुओंके लिए हितकारी एवं आवश्यक है । हमारी भावना है
कि सब धर्म-जिज्ञासु इस ग्रन्थका स्वाध्याय करके उसका आशय
समझकर मिथ्यात्वसे अपनी रक्षा करते हुए स्वसन्मुखता द्वारा
सम्यक्पना प्राप्त करें ।
वैशाख सुद-२
पू. गुरुदेवश्रीका
१२०वाँ जन्मोत्सव
ता. २६-४-२००९
साहित्यप्रकाशनसमिति
श्री दि० जैन स्वा० ट्रस्ट,
सोनगढ (सौराष्ट्र)